विराट धारा पर बेखौफ होकर भूमाफिया मचा रहे हैं तांडव शासकीय भूमि में अतिक्रमण के मामले पर सरकार साधा चुप्पी

 शहडोल भास्कर

हेडिंग =विराटधरा पर बेखौफ होकर भू माफिया मचा रहे हैं तांडव| शासकीय भूमि में अतिक्रमण के मामले पर सरकार की चुप्पी


शहडोल में इन दिनों कानून के माखौल उड़ाने वाले कानून के रक्षा सूत्र में बंधे हुये है| अधिकारी एवं नेतागण बेखौफ होकर शहडोल को गैर कानूनी तरीके से किए जा रहे हैं भूमि में अतिक्रमण के पैैतरे का इस्तेमाल| प्राचीन समय से शहडोल का नाम विराट नगरी के पहचान से जाना जाता रहा है पूरातत्वों के आधार से विराट मंदिर का पहचान विराट नगरी का एक बड़ा प्राचीन धरोहर स्थापित है ऐसे ही शहडोल में एक 160 तलाव का निर्माण महाभारत के समय में अज्ञातवास के दौरान पांडवों के विश्वकर्मा के द्वारा निर्माण किया गया था |जिसका पहचान लगभग हजारों वर्ष पूर्व से विराटनगर में प्राचीन धरोहर के नाम पर जाना जाता रहा है| वेहरहाल यह नगरी राजनीति का शिकार होते जा रहा है| और राजनेताओं के शह पर 160 तालाबों में से लगभग 50 तालाब शेष बचे हैं |बाकी सभी में गैर कानूनी तरीके से अतिक्रमण कर बड़े-बड़े मंजिलें तान दिए गए तो क्या नहीं है प्रशासन का डर जिससे शेष बचे तालाबों का संरक्षण नगरवासी एवं चुने हुए जनप्रतिनिधियों का भी जिम्मेदारी होती है|सूत्रों की माने तो शहडोल में सन दो हजार के पश्चात संभाग बनने के बाद भू माफिया तेजी से सक्रीय हुई है| जिसकी खामियाजा आज विराट नगरी के दिशा और दशा बदलने में भूचाल लाकर खड़ा कर दिये है| प्रशासनिक तनावान को अगर देखा जाए तो मंडल संयोजकआयुक्त के बैठने के बाद कानून व्यवस्था को दुरुस्त होने की वजह धीरे-धीरे पटरी से नीचे गिरते जा रहा है | कानून का उपयोग गैर कानूनी तरीके से दिन-रात शासकीय भूमि पर भू माफिया अतिक्रमण के तौर तरीकों को अमलीजामा पहनाने में राजस्व विभाग के आला अधिकारियों को भी साझेदारी बनाने में माहिर साबित हुई और कानूनी मोहर लगाने में महारत हासिल किये पिछले एक दशक से अगर मुड़ कर देखा जाए तो 22 वर्षों में शहडोल संभाग के 2525 एकड़ मध्यप्रदेश शासन की भूमि एवं वनटन व्यवस्थापन की भूमि हस्तांतरित होकर व्यवसायिक परिसरों का निर्माण कराया जा चुका है| मामला भले ही साधारण तौर पर दिखाई दे रहा हो| लेकिन बढ़ती जनसंख्या और शहडोल के विकास की अगर बात करें तो शासकीय भूमि पर अतिक्रमण के मामले रोजाना चार गुना बढ़ते जा रहा है कॉलोनाइजर के नाम पर भूमि हस्तांतरण करने वाला विभाग राजस्व पंजीयन उप पंजीयक के द्वारा शहडोल के शासकीय भूमि और बंटन व्यवस्थापन के आराजी को जिस तरह से कानून को धता बताते हुए रजिस्ट्री किया जा रहा है| इससे यह प्रतीत होता है कि शासकीय कर्मचारी अपने जिम्मेदारियों एवं कानूनी व्यवस्थाओं से ऊपर उठकर कानून को चुनौती देने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते| क्या इन्हें नहीं मालूम की तालाबों के ऊपर से अतिक्रमण को रोक रोकना सरकार के करिंदों एवं आला अधिकारियों ने कानून व्यवस्था का मखौल उड़ाने में अपने ही सरकार को चौतरफा घेरने का काम किया है| कानूनी जानकारों की माने तो 1959 /60 के बाद सीलिंग एक्ट अधिनियम के अनुसार स्वामित्व अधिकार धारण करने वाले भूमिस्वामी अपने आराजी के जीवो उपार्जन के पश्चात बचा हुआ भूमि को क्रय विक्रय किया जा सकता है| एवं 1959 के 60 के दशक में सर्वबंदोबस्त के हकीकत को अगर टटोला  जाए तो|शहडोल नगरी के आसपास ग्रामीण क्षेत्र से लेकर  शहरी क्षेत्र में शासकीय भूमियों की रकबा मध्य प्रदेश शासन के नाम में एक तिहाई से भी ज्यादा भूमि उल्लेखनीय स्तर पर शासकीय रिकॉर्ड में दर्ज पाया गया था| राजस्व विभाग के रजिस्टर एवं उपपंजीयक और हल्का पटवारी तहसीलदार रोकने के वजह जमीनी हकीकत को जिस कदर से छिपाने का कार्य किया है उससे शासकीय भूमि रिकॉर्ड में से गोलमाल वर्षों पूर्व किया जा चुका है और ठीक उसी भूमि में स्वामित्व कीआराजी दर्ज पाया जा रहा है| इस तरह की जमीनी हकीकत का खेल शासकीय भूमि से खेला जा रहा है| अतिक्रमणकारियों ने जमकर भ्रष्टाचार का इमारत लिखा गया

भूमि हस्तांतरण में कलेक्टर का क्या जिम्मेदारियां और 22 वर्षों में जिले के कलेक्टरों ने शासकीय भूमि को नजर बंद कर हजारों एकड़ शासकीय भूमि को गैर कानूनी तरीके से बचने में सफल रहे | इसका उदाहरण शहडोल के भू राजस्व शाखा की दस्तावेजों में लिखे गए झूठी पटकथा का उल्लेख नी कहानी जीवंत है| भारतीय संविधान के भू राजस्व संहिता 1959/60  के अगर बात किया जाए तो पूर्व समय में संशोधित राजस्व संहिता में रजिस्टर एवं उप पंजीयक शासकीय भूमि हस्तांतरण एवं निजी आराजी हस्तांतरण को लेकर जटिल रास्ते से गुजरने पढ़ते थे लेकिन भू माफियाओं ने एक अलग से सिंडिकेट रास्ता बनाकर जिले के कलेक्टर को मोलने का कार्य किया है| शासकीय भूमि के क्रय विक्रय परमिशन आदेश से संलिप्तता साफ जाहिर होता है सरकारी संपत्ति को गैरकानूनी तरीके से क्रय विक्रय करने में सरकार के लोगों का हाथ रहा है अभी भले ही परमिशन को लेकर सजगता पूर्ण जिले के मुखिया एवं कलेक्टर के हाथ से ऊपर उठकर परमिशन नियम में बदलाव किया जा चुका हो तब तक शहडोल के विराट नगरी के शासकीय भूमि एवं बंटन व्यवस्थापन  पर अतिक्रमणकारियो ने  बेचकर अरबो रुपये की कारोबार करने में माहिर साबित हुई संभाग में बैठे संभागायुक्त मंडल संयोजक इस कृत्य को देखकर सहानुभूति पूर्वक वर्षों तक तालाबों के ऊपर हो रहे अतिक्रमण एवं शासकीय भूमियों की बंदरबांट को मूकदर्शक बनकर देखते रहे और अब तक हजारों एकड़ भूमि में अतिक्रमण का शिकार हो चुका है बेखौफ होकर हजारों एकड़ भूमि में तान दिए मंजिल जिसको धराशाई करने में सरकार के नुमाइंदेगी करने वाले अधिकारी एवं जनप्रतिनिधि राजनेताओं का भी खुलेआम हाथ दिखाई दे रहा है |चाहे वह बिल्डर के रूप में अपना कारोबार फैलाया हो या कैलोनाइजर के आड़ में बैठकर करोड़ की बिचौलियों से मिलकर राजनेताओं का खुलेआम हाथ चाहे वह राजस्व ग्राम कुदरी का मामला हो और चाहे कोटवा के भू माफिया कल्याणपुर की भूमियों का विभाजन इस कदर से किया गया जैसे भाईचारा और पारिवारिक बटवारा का शिकार बन चुका है देखना यह होगा कि जिले में संवेदनशील अधिकारियों के पदस्थापना एवं स्थानांतरण के बाद की भूमि पर किए जा रहे हैं अतिक्रमण को रोकने में कितना कामयाब साबित होते हैं या तो अपना हिस्सेदारी में वफादारी का मोहर लगाकर गांधीवादी का पहचान रिश्वतखोरी और शासकीय भूमि के बदर बाट में हाथ फेर कर आदिवासी अंचल जिले को ठेंगा दिखाने वाले अधिकारी कानून को ताक में रखकर भूमि क्रय विक्रय निगरानी समितियों एवं डायवर्सन अपवर्जन विक्रय अधिकार क्षेत्र को निगरानी में रखकर बदलाव लाया जाएगा या चल रहे भ्रष्टाचार की इमारत को और बड़े स्तर पर लिखने का सहयोग अपने निचले स्तर के अधिकारियों को देंगे सत्ता में बैठे सत्ता पक्ष के सत्ताधारी नेताओं ने शहडोल नगरी के शासकीय भूमि पर गैरकानूनी तरीके से क्रय विक्रय का पटकथा लिखने में महती भूमिका साबित हुए और कानून को धता बताने के लिए सरकार के ही आसपास घूमते रहे तो क्या इनके ऊपर नहीं है शिवराज के कानून का डर जिस कारण मध्य प्रदेश शासन के भूमि में अतिक्रमण कर कॉलोनाइजर एवं क्रय विक्रय का भंडाफोड़ अब चुनावी सरगर्मी के बीच प्रतिस्पर्धा के आड़ में जन नेताओं का पोल खोलने में जनता से लेकर जनता दरबार तक जा पहुंचा है कार्यवाहियों की अगर बात किया जाए तो दो-चार वर्ष में अतिक्रमण के मामलों को लेकर प्रशासन गैर जिम्मेदारना तरीके से फल फूल रहे माफियाओं के ऊपर कार्यवाही की वजह अनुग्रह का कार्य किया गया है इससे जनता की नजर में सांफ लोगों के लिए भी कानून का भय दिखाइए देता है इससे यह प्रतीत होता है कि बढ़ती महंगाई में छोटे से भूमि के टुकड़े के लिए वर्षों की कमाई लगाकर भूमि खरीदने वाली हितग्राहियों को रिकॉर्ड में तो भूमि प्राप्त होता है लेकिन जमीनी हकीकत में वह भूमि 100 वर्ष पूर्व शासकीय रिकॉर्ड मे शासकीय दर्ज है इससे बिचौलियों ने अपना कारोबार कर पल्ला झाड़ कर दरकिनार हो जाते हैं और नगर के अंदर बसने का आम शहरी



लोगों का सपना चूर चूर हो जाता है

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